इतिहास में 21 अप्रैल
आज के दिन यानी 21 अप्रैल 1853 को सिख पंथ के महान विद्वान ज्ञानी दित्त सिंह का जन्म हुआ था। जुलाहा जाती में पैदा हुए ज्ञानी जी ने सिख धर्म को निगल रहे आर्य समाज के मुखिया स्वामी दयानंद सरस्वती को बहस में तीन बार हराकर अपनी विद्वता का लोहा मनवाया था। ज्ञानी जी पंजाबी के पहले प्रोफेसर थे। उन्हें पंजाबी पत्रकारिता के पितामह भी कहा जा सकता है। उन्होंने 52 वर्ष की उम्र तक 72 पुस्तकें लिखीं। जब महाराजा रणजीत सिंह जिंदा थे तब तक सिखों की आबादी एक करोड़ से ज्यादा थी लेकिन उनकी मौत (1839) के बाद से यह संख्या कम होती गई और 1881 की जनगणना के अनुसार 18 लाख रह गई। ब्रितानिया के अखबारों में लिखा जाने लगा था कि कुछ सालों तक सिखों को दर्शन सिर्फ़ अजायबघर में रखी तस्वीरों से ही होंगे। ज्ञानी जी ने अपने साथियों के साथ मिलकर सिख धर्म को बचाने के लिए कार्य शुरू किया। इन प्रयासों का ही नतीजा था कि ज्ञानी जी की मौत तक सिखों की आबादी फिर से एक करोड़ तक पहुंच गई थी। ऐसे सिख विद्वान को पंथ रत्न का खिताब मिलना चाहिए था लेकिन जातीवादी सिखों ने उन्हें मान सम्मान नहीं दिया।
आज के दिन यानी 21 अप्रैल 1938 को “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा” लिखने वाले कवि मोहम्मद इकबाल का निधन हुआ था। मोहम्मद इकबाल कश्मीरी ब्राह्मण थे जिनके पुरखों ने इस्लाम कुबूल कर लिया था।
आज के दिन यानी 21 अप्रैल 2010 को हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर गांव में वालमीकि समुदाय के योगेश चौहान नामक व्यक्ति के पालतू कुत्ते के भौंकने पर ऊंची जाति लड़के द्वारा मारे पत्थर का विरोध करने पर ऊंची जातियों ने दलितों को सबक सिखाने के लिए हजूम की शक्ल में दलितों की पूरी बस्ती पर हमला कर दिया। पच्चीस घरों को आग के हवाले कर दिया गया। इस आग में एक दिव्यांग लड़की सुमन और उसका 70 वर्ष का बूढ़ा पिता तारा चंद जलकर मर गए और 52 लोग घायल हुए। यह कारनामा प्रशासनिक अधिकारियों की हाजिरी में हुआ। सरकार ने दलित वर्ग की सुरक्षा के लिए कोई भी इंतजाम नहीं किया। असहाय दलितों को आखिर गांव छोड़ कर भागना पड़ा। जनवरी 2011 तक 130 से अधिक दलित परिवारों ने गांव से पलायन कर दिया।
Darshan Singh Bajwa (Editor Ambedkri Deep Magazine)

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें