सरकार के कुछ फैसले ही बता देते हैं कि वे किसके लिए काम करती है। डिफाल्टर उद्योगपतियों का 68 हजार करोड़ रुपिया माफ करना, अमीरों के बच्चों को घर तक पहुंचाने के लिए बसों का प्रबंध करना, निठल्ले पुजारियों को करोड़ों की मदद देना और दूसरी तरफ गरीब मजदूरों के लिए कुछ भी नहीं करना, उलटा उन्हें पुलिस से पिटवाना और आठ घंटे काम की बजाय बारह घंटे करना साबित करता है कि सरकार जो कुछ कर रही है सोच समझकर और जानबूझकर कर रही है। ऐसी सरकार एक मिनट के लिए भी नहीं चलनी चाहिए।
इन तस्वीरों को देखकर दो मिनट के लिए ठंडे दिल से सोचना कि ये सब लोग गरीब हैं। लॉकडाऊन में अगर सबको तंगी है तो इनमें कोई अमीर क्यों शामिल नहीं है।


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