. . . . . . . . . इतिहास में 25 मई . . . . . . . . . .
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आज के दिन यानि 25 मई 1928 को मराठी लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता व लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के छोटे पुत्र श्रीधर बलवंत तिलक ने आत्महत्या की थी।
श्रीधरपन्त का अपने पिता और ब्राह्मणों से अश्पृष्यता के कारण विवाद था। वे सब स्वतंत्रता की आड़ में वही रूढ़ि रिवाज लाना चाहते थे जो कि अन्याय कारक था। उनके अनुसार इससे बेहतर तो अंग्रेज राज ठीक है। श्रीधर अपने पिता से हमेशा लड़ते थे कि वे उन ब्राह्मणों को अनदेखा कर रहे हैं जो धर्म के नाम पर दिन दलितों को उनके हक से वंचित रखना चाहते हैं।
यह वाद उनके शादी के समय काफी बढ़ा जब श्रीधर ने शादी के लिए अलग अलग रिवाज के लोगों को आमंत्रित करवाया और शादी में ब्राह्मण रिवाज का विरोध किया जिसके चलते लोकमान्य तिलक ने ब्राह्मणों के आग्रह पर, पंचगव्य प्रसाद को प्रायश्चित के रूप में तैयार किया। श्रीधर पन्त ने उसका विरोध किया और कहा कि अगर आप मेरी शादी के लिए प्रायश्चित चाहते हैं, तो बेहतर है कि शादी न करें।
श्रीधर पन्त खुल कर डॉ. बाबा साहब आंबेडकर द्वारा संचालित समता आन्दोलन में सक्रिय हुए और लोकमान्य निवास पर एक बोर्ड लगा दिया, जिस पर लिखा था - 'चातुर्वर्ण्य विध्वंसक समिति'। बाबा साहब आंबेडकर कहा करते थे कि असली लोकमान्य तो श्रीधर पन्त हैं।
उन्हें केसरी (बाल गंगाधर तिलक द्वारा प्रकाशित अखबार) का हक पाने के लिए काफी विरोध सहना पड़ा। पिता की मृत्यु के बाद तो उन्हें ब्राह्मणों द्वारा पीड़ा दी गई थी। इसी पीड़ा के चलते आखिर 25 मई 1928 को, उन्होंने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस के नीचे आकर आत्महत्या कर ली।
डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर, प्रबोधनकार ठाकरे, केशवराव जडे और गैर-ब्राह्मणवादी आंदोलन के कई अन्य सदस्य श्रीधर पन्त के घनिष्ठ मित्र थे।
आज के ही दिन यानि 25 मई 1950 को बाबा साहेब अम्बेडकर बौद्ध रीती रिवाजों का अध्ययन करने के लिए कोलंबू गए। कांडी में उन्होंने बौद्ध कान्फ्रेंस से यह ऐलान करवाया कि वो ना केवल बौद्ध धर्म का प्रचार ही करेंगे बल्कि वो इसके लिए बलीदान भी करेंगे। यहां युवक बौद्ध समाज के युवायों को भारत में बौद्ध धर्म के उभार और पत्न के बारे में बताते हुए डाः अम्बेडकर ने कहा कि यह कहना गलत है कि भारत में से बौद्ध धर्म लोप हो गया है। उन्होंने कहा मैं मानता हूं बौद्ध धर्म अपने स्थूल रुप में लोप हो गया है लेकिन एक आध्यात्मिक शक्ति के तौर पर आज भी जीवित है।
दर्शन सिंह बाजवा
संपादक अंबेडकरी दीप

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