. . . . . . . . . इतिहास में 10 मई . . . . . . . . . .
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आज के दिन यानि 10 मई 1753 को जाट महाराजा सूरजमल ने दिल्ली को लूटा था। उन्होंने मुख्यतया बड़े लेवल पर दो बार दिल्ली पर आक्रमण किया था व उसे जीता। एक बार 1753 में जिसकी हम बात कर रहे हैं और एक बार 1763 में। वैसे उन्होंने दिल्ली पर कुछ अन्य आक्रमण भी किये थे।
सुरजमल महाराज ने दिल्ली के खिलाफ युद्ध की रणनीति बनानी शुरू कर दी। महाराजा सुरजमल के हौसले को देखकर मुगल बादशाह घबरा गया उसने अपने एक वकील महबूब द्दीन को औरंगाबाद से मलहराव होल्कर को बुला लाने के लिए भेजा। लेकिन पलवल के निकट रास्ते में ही उसे महाराजा सूरजमल के सैनिकों ने पकड़ कर बंदी बना लिया। फिर महाराजा सूरजमल ने मोर्चा संभाला और 9 मई को पुरानी दिल्ली की अनाज मंडी पर हमला कर दिया ताकि मुगलों की रसद राशन की लाइन टूट जाये। उनके सेनापति राजेन्द्र गिरी गोंसाई व जाट सैनिकों ने प्रातः 10 मई को अनाज मंडी पर कब्जा कर लिया। इसी पहली जीत की खुशी में हर वर्ष दिल्ली विजय दिवस मनाया जाता है। महाराजा सूरज मल की लूट कोई डाका नहीं था बल्कि दिल्ली के सामने खड़ा होने की जुर्रत थी। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। हरियाणा और पंजाब के जाटों के नेता दिल्ली हकूमत के साथ खड़े दिखाई देते हैं। बराबर लठ्ठ लेकर खड़े होने के लिए अब न तो कोई सर छोटू राम दिखता है और न ही चौधरी देवी लाल।
आज ही के दिन यानि 10 मई 1857 को कलकत्ता के नजदीक बैरकपुर छावनी में एक घटना घटी। हुआ यूं कि फौज में काम करते माता दीन भंगी को प्यास लगी तो उसने ब्राहमण मंगल पांडे से पानी का लोटा मांगा। उसने माता दीन के अछूत होने के कारण लोटा देने से इंकार कर दिया। माता दीन ने ताना देते हुए कहा कि जब तुम लोग गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूस मुंह से खोलते हो तब तुम्हारा धर्म कहां जाता है ? बस यही बात चिंगारी बन गई और बग़ावत भड़क गई। बाद में अंग्रेजों द्वारा बनाई बागियों की लिस्ट में माता दीन का नाम सबसे ऊपर था।
आज ही के दिन यानि 10 मई 1943 को इंडियन फैडरेशन आफ इंडिया लेबर की बंबई शाखा ने लेबर सदस्य बाबा साहब डाः अम्बेडकर के सम्मान में एक चाय पार्टी दी। स्वागती संबोधन का जवाब देते हुए उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया कि भारत के मजदूर वर्ग में एकता नहीं है बल्कि उसमें फूट है। अंत में उन्होंने कहा कि मजदूरों को भारत में मजदूर सरकार कायम करने के लिए संघर्ष करना चाहिए। स्वतंत्रता प्राप्त करना ही काफी नहीं, ज्यादा जरुरी बात है कि स्वराज्य किन के हाथ में होगा।
आज ही के दिन यानि 10 मई 1994 को नेल्सन मंडेला लोकतांत्रिक चुनावों के बाद दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुने गए। मंडेला ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेते हुए कहा था कि यह खूबसूरत धरती कभी दूसरों के उत्पीड़न का अनुभव करती थी। अब स्वतंत्रता का राज होगा। मानवता के इससे बेहतर उपलब्धि के मौके पर सूरज कभी नहीं डूबेगा।
दर्शन सिंह बाजवा
संपादक अंबेडकरी दीप


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